‘अद्भुत संन्यासी’ कथा शृंखला से संबद्ध चंद बातें

हिंदी साहित्य समाज के वर्तमान अभिभावक साहित्यकार 99 वर्षीय डॉ. रामदरश मिश्र की रचनाएँ उनकी ज़ुबानी सुनना परवर्ती पीढ़ी के लिए सौभाग्य की बात है। अनौपचारिक रूप में,बिना किसी एडिट के जस की तस वीडियो आपके लिए…💐

कोवलम : लाइटहाउस बीच के मछुआरे

कोवलम केरल का मनभावन प्रदेश! कोवलम का लाइटहाउस बीच अरब सागर के गहरे नीले अथाह जल को सागर में से ही निकली छोटी पहाड़ीनुमा बाँहों में ही नहीं भरता, बल्कि अन्य खूबियों के लिए भी जाना जाता है| लाइटहाउस बीच के ख़ूबसूरत रोमांचक नज़ारों के बीच एक नज़ारा यह भी है कि सुबह लहरों के ज्वार का अंदाज़ा लगाकर मछुआरों के छोटे-छोटे समूह  अपनी- अपनी नाव पर एक साथ निकलते हैं| एक बड़ा जाल गहरे सागर में उतारा जाता है | उस जाल के दोनों सिरों से बंधी प्लास्टिक की रस्सियों को मिलाकर बनाया गया दो मोटा रस्सा तट पर दो मीटर या उससे अधिक दूरी पर बंधा रहता है| उन रस्सों में क्रम से एक छोटा पत्थर, उसके बाद सफ़ेद थर्मोकोल का एक टुकड़ा बंधा होता है| यह टुकड़ा समुद्र की ऊपरी सतह पर तैरता रहता है| नौका पर सवार मल्लाह/मछुआरे टोह में लगे रहते हैं और उनका संकेत पाने के लिए कुछ मल्लाह/मछुआरे ऊँचे टीले पर चढ़कर उनके इशारे का  इंतज़ार करते रहते हैं | लगभग तीन-चार घंटों के बाद उन्हें इशारा मिलता है और फिर जैसा कि आप देख रहे हैं , उस जाल को खींचने के लिए दोनों ओर से एक-एक मछुआरा पानी में उतरता है और उनके इशारे पर किशोर , युवा, वृद्ध – सब जाल खींचने में अपनी पूरी ऊर्जा झोंक देते हैं | डेढ़ घंटे से अधिक मशक्कत के बाद जाल किनारे तक खींचकर पहुँचाया जाता है जिसमें एक भी बड़ी, मध्यम या औसत छोटी मछली नहीं होती बल्कि एक अँगुल के तीसरे भाग जितनी छोटी नवजात मछलियों से लेकर एक अँगुल जितनी मछलियाँ होती हैं| कुछ इतनी छोटी कि जाल के छेद से निकलकर कौओं का आहार बनती हैं| ये मछलियाँ रेसॉर्ट या होटलों में नहीं बिकतीं, बल्कि श्रम का दान करते उन पैतीस-चालीस मछुआरों के बीच बँटती हैं ताकि वे उसकी करी बनाकर खा सकें| वे रोज़ इसी तरह श्रम करते और भोजन की जुगत लगाते हैं| कुछ मछुआरे जो अच्छे नाविक भी हैं, वे किसी ठेकेदार की मोटर बोट चलाने का काम करते हैं और उनके लिए ग्राहक ढूँढकर लाने का भी | इसकी चर्चा अगली वीडियो में …| इतना बता दूँ कि उनके साथ मात्र चालीस मिनट पूरी शक्ति लगाकर  रस्सा खींचने के बाद मेरी हथेलियों में खून उतर आया था और उस क्षण  मैं समझ पा रही थी सागर की खूबसूरती उन पर बेअसर क्यों है! सागर उनके लिए भोजन के साधन की उम्मीद के रूप में है और धीरे-धीरे यह उम्मीद भी खोती जा रही है…|