कहानी ‘झूलते सवाल’ पर भाषाविद विजय कुमार मल्होत्रा की टिप्पणी

मर्मस्पर्शी।

‘झूलते सवाल’ में आत्महत्या या हत्या की मर्मांतक पीड़ा पाठक के मन को भी छलनी कर देती है. ये सवाल लेखिका के मन को ही नहीं पाठक को भी विचलित कर देते हैं. लेखिका की कलम से सिर्फ़ शब्द ही नहीं रिसते घाव का खून भी टप-टप गिरते हुए पाठक को चैन से जीने नहीं देता. आरती स्मित बुढ़ापे के सन्नाटे और पीड़ा को ऐसे व्यक्त करती है मानो यह हादसा उसके साथ ही हुआ हो. एक और मर्मस्पर्शा कहानी के लिए लेखिका को साधुवाद !

विजय कुमार मल्होत्रा