भोर की स्मित रेख
भोर को अंजुरी में भरकर मैं चल पड़ी हूँ ….. आप में से निकल कर आप तक पहुँचने … और ज़रिया बनाया अपनी कलम को; कभी कहानी,कभी कविता तो कभी आलेख व अन्य विधा को माध्यम बनाकर आ रही हूँ मैं ….
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